हर तरह से लेखन को सामंती दायरों से आजाद कराया....
फ़ेसबुक खुली अभिव्यक्ति का आधुनिक तकनीकी मंच है। वहीं महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी साहित्य में आधुनिक विचार अभिव्यक्ति के पुरोधा और आम आदमी के लिए सहज सुलभ छंदमुक्त साहित्य रचना का मार्ग प्रशस्त किया। वैचारिक दृष्टि से साम्यता खोजने वाले थोड़ी तो समानता दोनों में ढूंढ ही लेंगे।
यह बात अटपटी लगेगी। आसानी से गले के नीचे उतरने वाली भी नहीं है। Facebook और महाकवि निराला का कोई संबंध हो सकता है? दोनों का समय बिल्कुल अलग। फ़ेसबुक खुली अभिव्यक्ति का आधुनिक तकनीकी मंच है। वहीं महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी साहित्य में आधुनिक विचार अभिव्यक्ति के पुरोधा और आम आदमी के लिए सहज सुलभ छंदमुक्त साहित्य रचना का मार्ग प्रशस्त किया। वैचारिक दृष्टि से साम्यता खोजने वाले थोड़ी तो समानता दोनों में ढूंढ ही लेंगे। मैं कई बार बोलचाल में उन्हें हिंदी साहित्य को Facebook की तरह आम आदमी के लिए खुला मंच उपलब्ध कराने वाला निर्भीक योद्धा मानता हूं। कहने का आशय इतना भर है कि उन्होंने आज के सोशल मीडिया की तरह साहित्य रचना में वर्ण और मात्रा के गणित की दीवार ढहा दी और मुक्त छंद का उन्मुक्त आकाश दिया।
यह बात अटपटी लगेगी। आसानी से गले के नीचे उतरने वाली भी नहीं है। Facebook और महाकवि निराला का कोई संबंध हो सकता है? दोनों का समय बिल्कुल अलग। फ़ेसबुक खुली अभिव्यक्ति का आधुनिक तकनीकी मंच है। वहीं महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी साहित्य में आधुनिक विचार अभिव्यक्ति के पुरोधा और आम आदमी के लिए सहज सुलभ छंदमुक्त साहित्य रचना का मार्ग प्रशस्त किया। वैचारिक दृष्टि से साम्यता खोजने वाले थोड़ी तो समानता दोनों में ढूंढ ही लेंगे। मैं कई बार बोलचाल में उन्हें हिंदी साहित्य को Facebook की तरह आम आदमी के लिए खुला मंच उपलब्ध कराने वाला निर्भीक योद्धा मानता हूं। कहने का आशय इतना भर है कि उन्होंने आज के सोशल मीडिया की तरह साहित्य रचना में वर्ण और मात्रा के गणित की दीवार ढहा दी और मुक्त छंद का उन्मुक्त आकाश दिया।
आम आदमी को आज पब्लिक फोरम पर खुलकर अपनी बात कहने की आजादी है। यही सोशल मीडिया की सबसे बड़ी खूबी है, इसके चलते यह लोकप्रियता के शिखर पर है। समानता खोजने पर मुझे महसूस हुआ की साहित्य लेखन में सामंती दायरों को तोड़ने की जो लड़ाई महाकवि निराला ने अपने समय में लड़ी है वह Facebook मंच देने जैसी कोशिश से कही बड़ी और ऐतिहासिक है। हिंदी साहित्य के इतिहास में छंदोबद्ध रचनाओं के दायरे को तोड़ने का काम महाकवि निराला ने पूरे दमखम के साथ किया। उनके इस योगदान के प्रति हिंदी साहित्य जगत का हर छोटा-बड़ा रचनाकार हमेशा ऋणी रहेगा। कितनी ही नई विधाओं का जन्म इस विचार से हुआ, नई कविता, तमाम छंदमुक्त रचनाएं और हर तरह से लेखन को सामंती दायरों से आजाद कराया।
आसान, सुलभ 24 घंटे उपलब्ध
Facebook, Twitter जैसे मंच आज अपनी बात कहने के लिए बड़े आसान, सुलभ 24 घंटे उपलब्ध है। बड़ी से बड़ी हस्ती और खेत में काम करने वाला कम पढ़ा लिखा गंवई आदमी भी एक साथ खड़ा नजर आता है। विचार प्रक्रिया में परिमार्जन का अंतर हो सकता है, लेकिन विचार अभिव्यक्ति की जो आजादी मिली है, वह सभी दायरों को तोड़कर नितांत नूतन, जहां हर छोटा-बड़ा एक ही मंच पर नजर आता है। इसके अच्छे और बुरे परिणामों के बारे में जरूर चर्चा की जा सकती है। इस पर खूब चर्चा होती रही है। मुझे लगता है, होनी भी चाहिए क्योंकि इसमें किसी तरह का कोई फ़िल्टर नहीं है कि अच्छे और बुरे विचारों को अलग किया जा सके। मतलब जनहित और जनविरोधी भावनाओं को समाज में विभेद और गलत बातों को फैलाने से रोकने का कोई बहुत पुख्ता कारगर सिस्टम नहीं बन पाया है। यही वजह है कि इसके दुष्परिणाम व्यापक स्तर पर लोगों को चरित्र हनन और चरित्र हत्या के रूप में देखने को मिलते हैं।
ताक-झांक से प्राइवेसी पॉलिसी सवालों के घेरे में
हमारे पास अभी IT कानून तक इतने मजबूत नहीं है कि इस तरह के कुत्सित प्रयासों को प्रभावी तरीके से रोका जा सके। Facebook पर यूजर्स के व्यक्तिगत डेटा चोरी का आरोप लग चुका है और इससे जुड़े कैंब्रिज एनालिटिका डाटा लीक विवाद के बाद Facebook को 425 पन्नों में 2,000 से ज्यादा सवालों के जवाब देने पड़े हैं। इसमें Facebook ने कबूला है कि वह यूजर के कीबोर्ड और माउस के मूवमेंट पर भी नजर रखता है। यह भी पता लगाने की कोशिश करता है कि फोन की बैटरी कितनी बची है, ऐसा करके वह एक-एक यूजर की पसंद और नापसंद जानने की कोशिश करता है। इस ताक-झांक से प्राइवेसी पॉलिसी सवालों के घेरे में है।
परंपरागत मीडिया की पावर में सेंध
जहां तक सोशल मीडिया के अन्य प्रभाव की बात है सोशल प्लेटफार्म ने परंपरागत मीडिया की हालत वैसे ही कर दी है जैसे उसके हिस्से का जल नई पीढ़ी की मछली ने चुरा लिया है। या एक तरह से इसके अस्तित्व के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। जिस पावर के दम पर परंपरागत मीडिया अपनी पूरी शख्सियत और प्रभाव प्रस्तुत करता था, उसमें जैसे सेंध लगा दी है। सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स की भीड़ में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन अपनी हर छोटी बड़ी बात इस मंच से कह डालते हैं। और पलभर में करोड़ों लोग उन से जुड़ते हैं। बल्कि परंपरागत मीडिया को भी उसे खबर के रूप में उठाने पर मजबूर होना पड़ता है। एक जमाना था जब बड़े मीडिया हाउसेस के गेट पर इन्हीं शख्सियतों को कतार लगानी होती थी कि उनकी बात इस मंच के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का अवसर मिल जाए। बदले हुए हालात का अंदाजा लगा सकते हैं कि किस कदर परंपरागत मीडिया की पावर में सेंध लगाने की कोशिश सोशल मीडिया ने की है।
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