Tuesday, 12 June 2018

लालच का घर खाली... तीजन की जुबानी

छत्तीसगढ़ आइकॉन और पंडवानी लोक शैली की स्वर कोकिला पद्मभूषण तीजन बाई को अटैक आने की खबर फैली तो उनके चाहने वालों में जैसे खलबली मच गई। उनके गंभीर होने की खबरों का उन्होंने खुद ही पुरजोर तरीके से खंडन किया और जिंदादिली का परिचय देते हुए भिलाई के अस्पताल से कहा देखो मैं ठीक हूं.. बहरहाल तीजन बाई दीर्घायु हों हम सबकी शुभकामनाएं है। इस बीच मुझे याद आया कि मैंने कुछ महीने पहले ही उन से विशेष बातचीत की थी। हालांकि यह साक्षात्कार अभी तक कहीं भी प्रकाशित नहीं हुआ है। अपने ब्लॉग पर इसे आप सबके लिए शेयर कर रहा हूं। एक बार जरूर पढ़िएगा। आशा है पसंद आएगा। प्रतिक्रिया जरूर दीजिये।

जन्म- अप्रैल 1956
गांव- गनियरी भिलाई छत्तीसगढ़
विधा- पंडवानी लोक शैली गायन
सम्मान- पद्मभूषण- 2003
पद्मश्री- 1988
संगीत नाटक अकादमी अवार्ड 1995

बचपन से कभी जिसने स्कूल-कालेज का मुंह नहीं देखा ऐसी पंडवानी की स्वर कोकिला तीजन बाई पर डाक्टेरेट जैसी उपाधियां न्यौछावर हैं। वह छत्तीगढ़ की अघोषित ब्रांड एम्बेसेडर हैं। पद्मभूषण से देश-विदेश में ख्याति के बावजूद उनको कभी धन दौलत जमा करने का मोह नहीं रहा। एक उपदेशक की तरह कहतीं हैं कि लालच करना अच्छी बात नहीं है क्योंकि लालच का घर खाली। उम्र के पांच दशक पूरा कर चुकीं तीजन बाई को जीवन में कोई शिकायत नहीं है। ठेठ छत्तीसगढ़ी में बातचीत करने वाली तीजन की छत्तीसगढ़ के लिए आईकान की तरह पहचान है।
उनकी दिली ख्वाईश है कि छत्तीसगढ़ विकास करे। सरकार और जनता के सामूहिक प्रयास से यह सबसे विकसित राज्य बने। पढ़ाई लिखाई में आगे बढ़ा है। विकास में सबकी सहभागिता हो और उसका लाभ भी उन्हें मिले तभी प्रदेश का असली विकास कहा जाएगा। कलाकारों को आगे बढऩे के पर्याप्त अवसर हैं। मेहनत करके सम्मान के वे हकदार हो सकते हैं। अपना काम करते चलो सम्मान मिले या न मिले। मेहनत रंग लाती है। मैंने जीवन में कमजोर परिस्थिति में कला के लिए अपना समर्पण किया। सबकुछ सहते हुए कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे बच्चों के बीच जाती हैं तो अक्सर प्रेरणा और आशीर्वाद स्वरूप कहती हैं कि जो जिस क्षेत्र में माहिर है, उसको जतन से पकड़े रहो। पीछे मुड़कर मत देखो। हिम्मत, लगन और अपनी प्रतिभा लगाकर पंडवानी गायन किया। उसी का नतीजा है कि आज इस मुकाम पर हैं। वे अब तक दो सौ से ज्यादा बच्चों को पंडवानी की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। इनमें से कुछ सिद्धस्त कलाकार बनने की राह पर हैं।
तंबूरा थामने वाले हाथ कभी कंप्यूटर के की बोर्ड पर भले ही न चल पाए हों, लेकिन घर-परिवार के सब काम करती हैं। सब्जी बनाती हूं। चटनी बनाती हूं। धान मिंजाई व ओसाई भी कर लेती हूं। तीजनबाई साफगोई से कहती हैं- ईमानदारी से कहूं मैं आज भी गांव की हूं। आप ही बताएं मैं कहां से बड़ी हूं। बच्चों और बूढ़ों के बीच घुलमिलकर बैठ जाती हैं। उन्हें छत्तीसगढ़ी खाना पसंद है। एक टाइम बासी रात में पका चावल पानी में डाल कर और टमामर की चटनी उनको बहुत पसंद है। देश विदेश घूम आई हैं, लेकिन स्वदेश से खास लगाव है। खासकर यहां की विविध कला और संस्कृति आकर्षित करने वाली है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात उन्हें अच्छी तरह याद है। उन्होंने बताया कि उन्होंने पंडवानी सुनी और इतनी अभिभूत हो गईं कि महाभारत का प्रसंग समाप्त होने के बाद इंदिराजी ने उनकी पीठ थपथपाई।

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