पद्मभूषण तीजन बाई की तरह छत्तीसगढ़ की एक और प्रतिभा फिल्मकार अनुराग बसु से एक अर्से पहले अंतरंग बातचीत का अवसर मिला। फोन पर हुई इस लंबी चर्चा की भी अपनी एक कहानी है। एक विशेष परिशिष्ठ के लिए साक्षात्कार का मुझे असाइंमेंट मिला हुआ था, मैंने कला और संस्कृति की इन दो हस्तियों का चुना और बातचीत के प्रसास में जुट गया। काफी खोजबीन के उपरांत उनका फोन नंबर कहीं से मिला, लेकिन पता चला कि वे मोबाइल साथ नहीं रखते बल्कि उनकी माताजी के पास रहता है।मैंने फोन लगाया तो उनकी मम्मीजी ने ही उठाया। मैंने निवेदनपूर्वक उनसे कहा अनुराग जी से बहुत जरूरी बात करनी है? क्या आप मेरी बात करा सकती हैं। उन्होंने जवाब दिया क्यों नहीं। आप फोन रविवार को लगा लीजिए। मैंने तय समय में उन्हें कॉल किया और वे फोन पर रूबरू हुए। फिर क्या दिल खोलकर बातचीत का सिलसिला चला। इस दिलचस्प बातचीत के अंश मैं अपने ब्लाग पर शेयर कर रहा हूं जो अभी कहीं पर प्रकाशित नहीं हुए हैं। उम्मीद है आपको ये बातचीत पंसद आएगी।
- निर्देशक और लेखक
- 1993 से बालीवुड में सक्रिय
- जन्म रायपुर छत्तीसगढ़ में
- शुरुआती थिएटर: रायपुर व भिलाई
- गैंगेस्टर्स, मर्डर, लाइफ इन मेट्रो, बर्फी जैसी चर्चित फिल्में
रियलटी शो के हर मंच पर छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा...को गूंजायमान करने वाले मशहूर फिल्मकार अनुराग बसु का दिल हरदम छत्तीसगढ़ के लिए धड़कता है। बालीवुड की सिनेमाई जिंदगी में बेहद व्यस्त निर्देशक अनुराग बसु के दिल में छत्तीसगढ़ गहरे बसा हुआ है। वे इस बात को जोर देकर कहते हैं कि किसी छत्तीसगढिय़ा से कहीं ज्यादा मैं छत्तीसगढ़ी हूं। छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा पर मुझे गर्व है। रायपुर में पैदा हुआ हूं। मेरे पिताजी की पैदाईश यहीं की है। यहां पढ़ा, लिखा और बड़ा हुआ। पिता की नौकरी भिलाई स्टील प्लांट में थी। वहां मेरा काफी समय गुजरा। इन दोनों शहरों के थिएटर से गहरा नाता रहा। पंथी के मशहूर कलाकार स्व. देवदास बंजारे और अन्य लोक कलाकारों के साथ काम किया। थिएटर और कला की बारीकियों को यहीं से सीखा। बाद में मेरे पिता के सपने को पूरा करने मुंबई चला आया। उन्होंने मुंबई में कुछ ही सालों के संघर्ष में एक से बढ़कर एक फिल्में दी हैं। आस्कर के लिए नामित सर्वाधिक कामयाब फिल्म बर्फी और इससे पूर्व गैंगेस्टर्स, लाइफ इन ए मेट्रो जैसी अनेक फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं।
इतने वर्षों के बाद भी छत्तीसगढ़ जैसे उनका घर है। वे यहां का हालचाल एक स्थानीय निवासी की तरह जानते हैं। वे व्यस्तम क्षणों में भी चुपके से रायपुर और भिलाई में अपने मित्रों, परिचितों और परिजनों से मिलने चले आते हैं, जिसकी भनक बहुत कम लोगों को होती है। मध्यप्रदेश से अलग हुआ छत्तीसगढ़ उन्हें वर्तमान में थोड़ा विकसित जरूर लगता है। यह विकास केवल शहरों और उसके आसपास के गांवों में ही दिखता है। अभी भी दूरस्त ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में वे ठहराव सा महसूस करते हैं। वैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध छत्तीसगढ़ के पास कला व संस्कृति का खजाना है। यहां २२ किस्मों वाली फोक शैली की विरासत है। पंडवानी के दो-दो घराने हैं। इन्हें संजोए रखने की चुनौती है। फिल्मों और टेलीविजन के प्रभाव से सांस्कृति को नुकसान पहुंचा है। इसका असर केवल छत्तीसगढ़ के स्थानीय कलाकारों पर नहीं बल्कि अन्य राज्यों पर भी है। नई पीढ़ी को इससे जोडऩे की जरूरत है। बच्चे और युवाओं को नया रायपुर में जमीन के रेट मामूल हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि एशिया का इकलौता संगीत-कला विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ में है।
बहुत कुछ करना चाहता हूं...
अनुराग बसु छत्तीसगढ़ की प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने और उनके लिए कुछ करने की इच्छा रखते हैं। उनका कहना है कि आने वाले दिनों वक्त मिला और स्थानीय लोगों का साथ मिला तो निश्चित तौर पर राज्य के लिए बहुत कुछ कर पाऊंगा। यह तथ्य चर्चा में रहा है कि बर्फी का आइडिया भिलाई के ही एक मानसिक विकलांग स्कूल से लिया है। इसके अलावा भी फिल्म में कई ऐसे फ्रेम हैं, जहां अनुराग और उनका भिलाई जीवंत हो उठता है। मुस्कान मानसिक विकलांग विद्यालय एवं पुनर्वास केंद्र चल रहा है।
- निर्देशक और लेखक
- 1993 से बालीवुड में सक्रिय
- जन्म रायपुर छत्तीसगढ़ में
- शुरुआती थिएटर: रायपुर व भिलाई
- गैंगेस्टर्स, मर्डर, लाइफ इन मेट्रो, बर्फी जैसी चर्चित फिल्में
रियलटी शो के हर मंच पर छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा...को गूंजायमान करने वाले मशहूर फिल्मकार अनुराग बसु का दिल हरदम छत्तीसगढ़ के लिए धड़कता है। बालीवुड की सिनेमाई जिंदगी में बेहद व्यस्त निर्देशक अनुराग बसु के दिल में छत्तीसगढ़ गहरे बसा हुआ है। वे इस बात को जोर देकर कहते हैं कि किसी छत्तीसगढिय़ा से कहीं ज्यादा मैं छत्तीसगढ़ी हूं। छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा पर मुझे गर्व है। रायपुर में पैदा हुआ हूं। मेरे पिताजी की पैदाईश यहीं की है। यहां पढ़ा, लिखा और बड़ा हुआ। पिता की नौकरी भिलाई स्टील प्लांट में थी। वहां मेरा काफी समय गुजरा। इन दोनों शहरों के थिएटर से गहरा नाता रहा। पंथी के मशहूर कलाकार स्व. देवदास बंजारे और अन्य लोक कलाकारों के साथ काम किया। थिएटर और कला की बारीकियों को यहीं से सीखा। बाद में मेरे पिता के सपने को पूरा करने मुंबई चला आया। उन्होंने मुंबई में कुछ ही सालों के संघर्ष में एक से बढ़कर एक फिल्में दी हैं। आस्कर के लिए नामित सर्वाधिक कामयाब फिल्म बर्फी और इससे पूर्व गैंगेस्टर्स, लाइफ इन ए मेट्रो जैसी अनेक फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं।
इतने वर्षों के बाद भी छत्तीसगढ़ जैसे उनका घर है। वे यहां का हालचाल एक स्थानीय निवासी की तरह जानते हैं। वे व्यस्तम क्षणों में भी चुपके से रायपुर और भिलाई में अपने मित्रों, परिचितों और परिजनों से मिलने चले आते हैं, जिसकी भनक बहुत कम लोगों को होती है। मध्यप्रदेश से अलग हुआ छत्तीसगढ़ उन्हें वर्तमान में थोड़ा विकसित जरूर लगता है। यह विकास केवल शहरों और उसके आसपास के गांवों में ही दिखता है। अभी भी दूरस्त ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में वे ठहराव सा महसूस करते हैं। वैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध छत्तीसगढ़ के पास कला व संस्कृति का खजाना है। यहां २२ किस्मों वाली फोक शैली की विरासत है। पंडवानी के दो-दो घराने हैं। इन्हें संजोए रखने की चुनौती है। फिल्मों और टेलीविजन के प्रभाव से सांस्कृति को नुकसान पहुंचा है। इसका असर केवल छत्तीसगढ़ के स्थानीय कलाकारों पर नहीं बल्कि अन्य राज्यों पर भी है। नई पीढ़ी को इससे जोडऩे की जरूरत है। बच्चे और युवाओं को नया रायपुर में जमीन के रेट मामूल हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि एशिया का इकलौता संगीत-कला विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ में है।
बहुत कुछ करना चाहता हूं...
अनुराग बसु छत्तीसगढ़ की प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने और उनके लिए कुछ करने की इच्छा रखते हैं। उनका कहना है कि आने वाले दिनों वक्त मिला और स्थानीय लोगों का साथ मिला तो निश्चित तौर पर राज्य के लिए बहुत कुछ कर पाऊंगा। यह तथ्य चर्चा में रहा है कि बर्फी का आइडिया भिलाई के ही एक मानसिक विकलांग स्कूल से लिया है। इसके अलावा भी फिल्म में कई ऐसे फ्रेम हैं, जहां अनुराग और उनका भिलाई जीवंत हो उठता है। मुस्कान मानसिक विकलांग विद्यालय एवं पुनर्वास केंद्र चल रहा है।
shandaar.......
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