जब हर तरफ हो च़ीखें चिल्लाहट और पुकार
आंखें नम और धडंकने बेदम
तब खुद को रहनुमा बताने वाले कहां हैं
नंगा नाच करें ये जमाखोर ये सौदागर
तब झूठी तसल्ली देने वाले रहनुमा कहां हैं
कहते हैं जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य
मरने के बाद जब दो गज जमीन भी नसीब न हो
खुद को इंसानियत का रहनुमा बताने वाले कहां हैं
कतरा-कतरा आंसू के साथ छोड़ दिया उनको उन्हीं के हाल,
सगे-संबंधी और भाई-मित्र सब मुख मोड जाएं असहाय,
तब मुश्किल घड़ी में मदद का दंभ भरने वाले रहनुमा कहां हैं
प्यार वफा सब बातें बनकर रह जाएं
भगवान के डर से भी ज्यादा हो जाए मौत का खौफ
तब अराजकता को खत्म करने वाले रहनुमा कहां हैं
जो सबक पहली बार में न सीखे
वह दोबारा और घातक होकर लौटे
संकट से बचा पाने में हो पूरी तरह नाकाम
तब खुद को रहनुमा बताने वाले कहां हैं
हर तरफ कंटीले जंगल उग आए हों
पानी और हवा में घुला हो जहर
इस मुश्किल घड़ी से बचाने वाले वो रहनुमा कहां हैं
- गोविंद ठाकरे
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