Monday, 28 May 2018

पत्रकार-साहित्यकार रघुवीर सहाय को याद करते हुए...

स्वाध्याय और एकांत, चिंतन-मनन की प्रक्रिया को न सिर्फ तीव्र करता है, बल्कि अनुभूति के स्तर पर काफी कुछ नया सीखने और समझने को मिलता है, बहराल ऐसे कम ही अवसर आते हैं फिर जब कभी ऐसे मौके आएं तो गंवाना नहीं चाहिए। इन्हीं बहुमूल्य पलों में बहुआयामी रचनाकारों के व्यक्तित्व को जानने की कोशिश की। इनमें कुछ नाम मेरे पसंदीदा लेखक और साहित्यकारों के हैं। महाभारत की अमर कथा पर बीआर चोपड़ा के सीरियल के लिए लिखने वाले राही मासूम रजा और बेहतरीन पत्रकार और लेखक साहित्यकार कमलेश्वर,  बिलासपुर में जन्मे श्रीकांत वर्मा और पत्रकार व साहित्यकार की दोहरी भूमिका में बेहद खरे उतरने वाले लेखक साहित्यकार पत्रकार रघुवीर सहाय के लेखन की बारीकियों को समझने की कोशिश करें तो वे व्यावसायिक लेखन के साथ गंभीर लेखन की मूल्यवान धरोहर छोड़ गए हैं। मानवीय संवेदनाओं को जगाने वाली ऐसी रचनाएं की हैं, जिन्हें साहित्य अकादमी और भारतीय ज्ञानपीठ जैसी श्रेष्ठ साहित्यिक संस्थाओं को सहेजने पर मजबूर होना पड़ता है बल्कि उन्हें सम्मान के लायक भी समझा गया। उनकी धारदार अभिव्यक्ति आम पाठक जन के मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। ्दिशा देने वाला मार्गदर्शक साहित्य समाज की अमूल्य निधि की तरह है। यह कैसे संभव हुआ? यही मेरी पड़ताल का विषय था, मैंने पाया के रघुवीर सहाय कहते हैं कि किसी व्यक्ति की ठंड या भूख से मौत की खबर तो बन सकती है, लेकिन उन असमय मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति के जीवन संघर्ष पर शायद ही कोई लिखता है। एक पत्रकार चाहे तो उसकी जीवन गाथा को कविता, कहानी, उपन्यास का रूप दे सकता है। बड़े ही संवेदनशीलता के साथ रघुवीर सहाय रचना-प्रक्रिया पर अपनी बात कहते हैं और इसके दर्शन उनकी रचनाओं में हर जगह होते हैं। इसी को जोड़ते हुए अपनी बात कहता हूं कि अखबार का लिखा हुआ यानी तथ्यों पर आधारित और निश्चित फॉर्मेट में बंधी हुई सूचनाएं या खबरें समय के साथ अप्रासंगिक हो जाती हैं, लेकिन उनसे जुड़ी हुई गहरी भावना और संवेदना पर लेखन समय सापेक्ष हो जाता है। अर्थात पत्रकार समांतर रूप से संवेदना के स्तर पर खबरों को महसूस कर लिखने का हुनर दिखाए तो रघुवीर सहाय या अन्य रचनाकारों की तरह दोहरी भूमिका बखूबी निभा सकता है। यह एक समर्पित तौर पर काम करने वाले के लिए तभी आसान होगा जब आप अखबार में भी सफलतापूर्वक काम करें और अपनी भावनाओं, संवेदना और अकादमिक पहलू को परिभाषित करते हुए  गंभीर लेखन भी साथ-साथ कर सकें। यह कला, रचनाधर्मिता एक बेहतर अच्छे पत्रकार के लिए अपेक्षित ही नहीं अनिवार्य हिस्सा भी है।


Tuesday, 3 April 2018

रूठा हुआ बसंत...


रूठा हुआ बसंत...

वेब तरंगों पर बैठी कोकिल बैनी इस बसंत का दर्द गा-गाकर सुनाती,
आंसुओं में सब कुछ भीगा-भीगा,
इस बसंत का हाल,
मन भावनी मूरत का खंडित-खंडित होना, होली के पहले ज्यों बसंत का बिखर-बिछड़ जाना,
मोटी-मोटी अंखियों में बसंती मादकता का रसवास लिए जब भी एकटक,
सीधे दिल की गहराइयों में उतरा,
बस एक गिला यही रहा,
असमय मधुमास के मुकुट सजी आम्र मंजरी पर एकाएक तुषारापात,
फसलों की लहराती केशु सबको आगोश लिए,
चाहत चांदनी को तिलक देत रघुवीर, बोले शब्दों की गाथा में जैसे पतझड़ के बिछड़े पत्तों पर चला गया मधुमास,
जब भी उसके केशु लहराए घटाटोप अंधियारे में, तन-मन पर छाया यौवन का उजास,
ऐसा रुठा बसंत हमसे,
बेमौसम बादल छाए,
तूफानी कलरव लेकर आया लहराती फसलों पर पतझड़ सा बिखराव !!!

Thursday, 21 January 2016

विजन की तलाश

पिछले दिनों मशहूर कथाकार रवींद्र कालिया जी का निधन हो गया, उनकी अनेक रचनाएं दिल को छूने वाली हैं। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए उनमें से एक का यहां जिक्र करना चाहूंगा...

समाज जिसे खुलकर कहने की स्वीकृति नहीं देता, उस अनकहे को बड़ी खूबसूरती से कालिया जी ने अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति दी है। नौ साल छोटी पत्नी... कहानी जैसी उनकी अनेक रचनाएं इसका सटीक उदाहरण हैं। सोचता था उम्र के अंतर की कथा शायद उनका अपना अनुभव हो, लेकिन ममता कालिया जी और उनके बीच उम्र में मात्र दो वर्ष का ही अंतर है। कहानी पढऩे के बाद लगा श्रेष्ठ रचनाकार वही होता है, जो खुद के हर अहसास को सबका बना दे। यहां जबलपुर के साहित्यकार ज्ञानरंजन जी की कहानी की परिभाषा उल्लेखनीय है कि तनाव और संतुलन के बीच विजन की तलाश ही कहानी है।

ब्लाक के नए संस्करण प्रसंग में मैं आप से समय-समय पर मिलता रहूंगा। आप मेरे विचारों से हमेशा सहमत भले न हो पाएं, लेकिन मैं आपकी मूल्यवान प्रतिक्रियाओं का  हमेशा स्वागत करूंगा। इसे वादे के साथ नए सफर पर....