Tuesday, 3 April 2018

रूठा हुआ बसंत...


रूठा हुआ बसंत...

वेब तरंगों पर बैठी कोकिल बैनी इस बसंत का दर्द गा-गाकर सुनाती,
आंसुओं में सब कुछ भीगा-भीगा,
इस बसंत का हाल,
मन भावनी मूरत का खंडित-खंडित होना, होली के पहले ज्यों बसंत का बिखर-बिछड़ जाना,
मोटी-मोटी अंखियों में बसंती मादकता का रसवास लिए जब भी एकटक,
सीधे दिल की गहराइयों में उतरा,
बस एक गिला यही रहा,
असमय मधुमास के मुकुट सजी आम्र मंजरी पर एकाएक तुषारापात,
फसलों की लहराती केशु सबको आगोश लिए,
चाहत चांदनी को तिलक देत रघुवीर, बोले शब्दों की गाथा में जैसे पतझड़ के बिछड़े पत्तों पर चला गया मधुमास,
जब भी उसके केशु लहराए घटाटोप अंधियारे में, तन-मन पर छाया यौवन का उजास,
ऐसा रुठा बसंत हमसे,
बेमौसम बादल छाए,
तूफानी कलरव लेकर आया लहराती फसलों पर पतझड़ सा बिखराव !!!

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