Tuesday, 3 April 2018

रूठा हुआ बसंत...


रूठा हुआ बसंत...

वेब तरंगों पर बैठी कोकिल बैनी इस बसंत का दर्द गा-गाकर सुनाती,
आंसुओं में सब कुछ भीगा-भीगा,
इस बसंत का हाल,
मन भावनी मूरत का खंडित-खंडित होना, होली के पहले ज्यों बसंत का बिखर-बिछड़ जाना,
मोटी-मोटी अंखियों में बसंती मादकता का रसवास लिए जब भी एकटक,
सीधे दिल की गहराइयों में उतरा,
बस एक गिला यही रहा,
असमय मधुमास के मुकुट सजी आम्र मंजरी पर एकाएक तुषारापात,
फसलों की लहराती केशु सबको आगोश लिए,
चाहत चांदनी को तिलक देत रघुवीर, बोले शब्दों की गाथा में जैसे पतझड़ के बिछड़े पत्तों पर चला गया मधुमास,
जब भी उसके केशु लहराए घटाटोप अंधियारे में, तन-मन पर छाया यौवन का उजास,
ऐसा रुठा बसंत हमसे,
बेमौसम बादल छाए,
तूफानी कलरव लेकर आया लहराती फसलों पर पतझड़ सा बिखराव !!!

Thursday, 21 January 2016

विजन की तलाश

पिछले दिनों मशहूर कथाकार रवींद्र कालिया जी का निधन हो गया, उनकी अनेक रचनाएं दिल को छूने वाली हैं। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए उनमें से एक का यहां जिक्र करना चाहूंगा...

समाज जिसे खुलकर कहने की स्वीकृति नहीं देता, उस अनकहे को बड़ी खूबसूरती से कालिया जी ने अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति दी है। नौ साल छोटी पत्नी... कहानी जैसी उनकी अनेक रचनाएं इसका सटीक उदाहरण हैं। सोचता था उम्र के अंतर की कथा शायद उनका अपना अनुभव हो, लेकिन ममता कालिया जी और उनके बीच उम्र में मात्र दो वर्ष का ही अंतर है। कहानी पढऩे के बाद लगा श्रेष्ठ रचनाकार वही होता है, जो खुद के हर अहसास को सबका बना दे। यहां जबलपुर के साहित्यकार ज्ञानरंजन जी की कहानी की परिभाषा उल्लेखनीय है कि तनाव और संतुलन के बीच विजन की तलाश ही कहानी है।

ब्लाक के नए संस्करण प्रसंग में मैं आप से समय-समय पर मिलता रहूंगा। आप मेरे विचारों से हमेशा सहमत भले न हो पाएं, लेकिन मैं आपकी मूल्यवान प्रतिक्रियाओं का  हमेशा स्वागत करूंगा। इसे वादे के साथ नए सफर पर....