भारतीय संस्कृति और अध्यात्म में इतनी शक्ति है कि अवधारणाएं, ज्ञान और दर्शन मनुष्य समाज हर समस्या के समाधान में सक्षम है। यह सूत्रात्मक और काल के परे उपयोगी मानी जाती है। एक विचार मन में आता है कि संचार क्रांति के जमाने में जब पूरा विश्व प्राचीन वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा में रूपांतरित होता दिख रहा है, जो कि तकनीक के माध्यम से संभव हो रहा है। भारतीय अध्यात्म, दर्शन इस बात को पूरी तरह से सूत्र शैली में समझाने में सक्षम है कि आज का विज्ञान और इंजीनियरिंग दोनों के मूल में हमारे विचार हमारी प्राचीन अवधारणाएं बहुत गहरे रूप में विद्यमान है। यह बात बार-बार रिसर्च अनुसंधान में सिद्ध हो चुकी है। इसे और आसानी से समझा जा सकता है कि दुनिया में शोध और अनुसंधान दो श्रेणियों में चल रहे हैं। इनके चरम पर पहुंचकर देखा जाए तो यह समझ में आता है कि हमारी वैज्ञानिक दुनिया में हम जिस ब्रह्मांड में टिके हुए हैं, जो पृथ्वी हमारा रहवास हैं, वैसी दुनिया क्या दूसरे ग्रहों में हो सकती है? यह हमारी जिज्ञासा और खोज का विषय सतत् बना हुआ है। सुक्ष्म से लेकर बड़े पिंडों की खोज में अंतरिक्ष विज्ञान विस्तार और विस्तार पाता हुआ अनंत को नापने की ओर अग्रसर है। दूसरी ओर सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म की यात्रा करता हुआ विज्ञान, सूक्ष्म से विराट की यात्रा को जोडऩे का प्रयास कर रहा है। सूक्ष्म दुनिया आज एक नियंता की भूमिका में आ चुकी है। जैसे पार्टिकल की अजब-गजब दुनिया। हालांकि इनके आचरण-व्यवहार को लेकर वैज्ञानिक दुनिया अभी बंटी हुई दिखती है, लेकिन एक बात पर लगभग सहमत होता दिखता है कि किसी पार्टिकल का वेब नेचर भी हो सकता है। जो क्वांटम थ्योरी का मूल आधार है। इसे विरोधी खेमे के वैज्ञानिक भी पूरी तरह नकार नहीं पाए हैं। आशय इतना है कि वैज्ञानिक जगत भी यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि यह जगत मूल रूप से पार्टिकल नेचर का है या फिर वेब।
सूक्ष्म कणों की खोज लगातार जारी है, सूक्ष्मतम कण अर्थात अणु, परमाणु, न्यूट्रॉन, प्रोटॉन इलेक्ट्रॉन और इनसे भी सुक्ष्म कणों की दुनिया में अब तक के आखिरी कण की खोज की जा चुकी है, जिसे गॉड पार्टिकल कहते हैं। इसे कुछ वर्ष पहले जिनेवा में हुए महाप्रयोग के माध्यम से खोजा गया है। वह गॉड पार्टिकल, जिसका नाम भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस पर रखा गया है बोसॉन। यह दर्शाता है कि भारतीय मूल के वैज्ञानिक जो अपनी प्रतिभा के बल पर दुनिया को नए नए प्रयोगों से अवगत कराते आए हैं। यह हैरान करने वाली बात है कि वैज्ञानिक जगत के शीर्ष पर विराजित आइंस्टिन और मैक्स प्लांट के नाम पर गॉड पार्टिकल का नाम रखने के बजाए भारतीय मूल के वैज्ञानिक बोस पर रखा गया। इससे एक भारतीय वैज्ञानिक और प्रतिभा की हैसियत का पता चलता है। इतना ही नहीं पूर्व में विशालयकाय पिंडों की चर्चा की। ब्रह्मांड में विशायलकाय पिंडों के गणना या आंकलन की बात हो तो इसे भी दुनिया ने चंद्रशेखर लिमिट संबोधित किया है। भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता खगोल वैज्ञानिक सुब्रह्मणियम चंद्रशेखर के नाम पर इस लिमिट का नाम रखा गया है। स्पष्ट है कि चाहे सुक्ष्म जगत की सुक्ष्मतम लिमिट हो या विशाल ब्रह्मांड की अधितम लिमिट सभी पर भारतीय प्रतिभा का सिक्का चलता है। यह दबदबा है भारतीय प्रतिभा का। सक्ष्म और विशाल दानों की सीमा रेखा पर भारतीय वैज्ञानिकों को सम्मान देखकर दुनियाभर ने भारतीय प्रतिभा का लोहा माना है, लेकिन भारत में ज्यादातर लोग उनसे परिचित नहीं हैं। न स्कूलों में न कभी कॉलेजों में उनके नाम गर्व से लिये जाते हैं। हमारी राजनीतिक पार्टियों को इसकी कोई चिंता नहीं है। हमें आपस में लड़ाने से उनको फुर्सत नहीं मिलती है। राजनीतिक रोटियां सेंकने के अलावा उनके पास और कोई काम नहीं है। यह बड़े दुर्भाग्य से कहना पड़ता है दूसरी तरफ हमारे अध्यात्म और दर्शन में दुनिया को राह दिखाई है, लेकिन आज उनके उत्तराधिकारी भटके हुए हैं। वह भी सामाजिक विभेद और धर्म पंथों के प्रवर्तक बने हुए हैं। इसी परिणाम है कि मानव-मानव में भेद मानव-मानव में लड़ाई प्रतिभाओं को कमजोर या हतोत्साहित करने वाला प्रयास ही कहा जाएगा। आज हम भारत में योग जैसी शक्तियों को व्यवसायिक और प्रायोगिक कसौटी पर कस चुके हैं, लेकिन हम इससे इतर जो प्रतिभा है, जो ज्ञान दर्शन है, उससे सीखकर नया करने के लिए शायद उतने तैयार नहीं हैं, जो देश से बाहर जाकर हमारे लोग करिश्मा कर गुजरते हैं। जिन भारतीय प्रतिभाओं के दम पर सूक्ष्म और विराट दुनिया को एक सूत्र में बांधने की तकनीक खोज निकाली गई है और उनके दोनों छोरों पर भारतीय वैज्ञानिक अवस्थित हैं। विद्यमान हैं। इस दुनिया को एक तरह से भारतीय से भारतीय तक छोर द्वारा नापा जा सकता है। इस बात को दुनिया अच्छी तरह समझती है, लेकिन हम दीया तले अंधेरा, गुमनाम मानसिक रूप से पिछड़ते जा रहे हैं। हम सबको सोचना पड़ेगा हमारी दुर्दशा क्यों है? हम इससे कैसे बाहर आ सकते हैं। इस पर बार-बार नहीं हजार बार सोचना पड़ेगा। तभी हम हर लिमिट की हाईट पर भारतीय वाली पंक्ति को सार्थक कर पाएंगे।